आज है गर कत्ल कोई
कल कोई माफ़ी नहीं क्या?
ख़ून गंदा हो गया गर !
इश्क़ है साफ़ी नहीं क्या?
क्या ज़रूरत मौत की है!
जिंदगी काफ़ी नहीं क्या?
आँसुओं से कल्ब धुलना!
कल्ब इत्लाफ़ी नहीं क्या?
हाय! चुप्पी हुकूमत की
गज़ब इंसाफ़ी नहीं क्या?
सुन के नजरें झुका लेना
हुक्म एतराफी नहीं क्या?
© सूर्यम मिश्र
suryamprachands
Insta.- @kalamkaar_sm
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suryamprachands 1w
हम मतलब ऐसा कुछ लिख ही नहीं पाएंगे तुमपे कि जो बहुत सुंदर या ऐसा हो जो पहले कभी नहीं जैसा हो, लेकिन हां ये ज़रूर लिखेंगे कि तुम हमायी प्रिय छोटी बहन हो। तुमसे जो अपनत्व और आदर मिलता है ना, वो इतना सौम्य और शीतल होता है कि वो अथाह की परिधि से परे हो जाता है।
अत्यंत उत्साह और स्नेह के इस, ना सिर्फ़ तुम्हारे बल्कि मेरे और वो सभी लोग जो तुमसे स्नेह रखते हैं, उन सबके इस विशेष दिवस पर मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की वो तुम्हें सदैव अनहद स्नेह, हर्ष,समृद्धि, सुस्वास्थ्य से अभिषिक्त रखें, दीर्घायु करें
बाकी हमायी पार्टी वाली बात तौ पतै है तुमको, रही तुम्हाई जलेबी वाली बात तो ऊ हमका याद ना है,
जन्मदिन की खूब शुभकामनाएँ अनु, जुग जुग जियो मोर बच्ची
Happy birthday @shayarana_girl Anu bachchiiiQuiet as a flower and
pretty as a doll.
Your words are like,
some sugary squall.
You means a creation,
cute and complete.
Beyond the words of
praise,
sweet over sweetness
of sweet.
May God bless you,
May you live longer,
Years keep passing
to make you stronger.
I've only words to give,
and a lot to say.
And a prayer to pray,
you may grow up, day by day.
May you be happy
and make all your problms shabby,
But one thing, give me
the party,
I'll be there with your jalebi.
- Your Suryam bhaiya -
था वो, मजबूर या मगरूर, दिल में भर लिया जाए
गुनाहों से,...निगाहों के,...ज़रा सा डर लिया जाए
है उसने जान बख़्शी, कत्ल करके, मान लो सूर्यम
जगह दिल में ना आंखों में गुज़ारा कर लिया जाए
©Suryam Mishra -
❤️
वो अविरल काले, केश पाश
वो तीर नयन, वो मधुर हास
वो मौन अधर हैं, किंतु मुखर
वो वाचाली दृग,...रम्य,प्रखर
वो अधरों का,... उन्मुक्त मेल
उनमें शब्दों का,...सूक्ष्म खेल
इन सबमें ये चित्त उलझ कर कहीं खो गया
हमको लगता प्रेम हो गया, हमको तुमसे प्रेम हो गया
मन.....तुमसे बतियाना चाहे
साथ बैठ कर.... खाना चाहे
प्रेम इसे ही.....कहते शायद
जग भर में है..बड़ी कवायद
कुछ तो तुमसे,.कहना है पर
अपनी हद में,...रहना है पर
तुमको देखा सच कहता हूँ ये उच्छृंखल हृदय सो गया
हमको लगता प्रेम हो गया, हमको तुमसे प्रेम हो गया
© Suryam Mishra -
Poetry ❤️
When the whole world goes,
in the abyss of dreams.
When the mirk starts to kill,
this starved world's screams.
When the sky pours,
infinite peace on the road.
When the fidelity becomes
allusion,
and starts to make mind it's
abode.
Then somewhere on earth,
some melodies born.
Most of them are joyous,but
some of them are deadliest
mourn.
These melodies turn into a
tornado, in a creature's brain.
and this swirling storm emits,
sometimes gaiety and some-
times a terrible pain.
It all settles down,with a little
ink on a page.
And that's how a wordsmith
makes, a beautiful garland of
words, for the world to gaze.
-© Suryam Mishra -
❤️
Your soul turns white, when you start to feel blue.
Am I right ?
©Suryam Mishra -
पुनरावृत्ति
नियति चाहे प्रतिष्ठित पथ में सदा कंटक बिछाए
चक्षुओं का स्वप्न मोहक भले क्षण में उचट जाए
चित्त होकर चित्त..कतिपय भीरुता के गीत गाए
राग वो रण-त्यागने के मात्र,...अधरों पर सजाए
शक्ति की समिधा चढ़ा तब, शौर्य हम भर लाएँगे
हम फ़िर खड़े हो जाएँगे,हम फ़िर खड़े हो जाएँगे
काल क्रंदन मान मंडित,......वंदना के शीश धाए
जग तिमिर को, देवता कह,उठा आनन से लगाए
पाप का परिमाप,....पुण्यों के हृदय में घर बसाए
या कि उस दुर्बोध को बस,.निरावृत रहना सुहाए
जब निराश्रित अश्रु के कण,..धरा को अपनाएँगे
हम फ़िर खड़े हो जाएंगे,हम फ़िर खड़े हो जाएंगे
प्रीति का उद्यान,.....उद्यमशील रहना भूल जाए
नग्न नर्तन काल का वो,...प्रणय पुंजों में दिखाए
वेदना ही वेदना बस,........चेतना को नोच खाए
प्रीति शाश्वत देख ले ये मान मद,और लजा जाए
ज्ञान बन अज्ञान से तब,.....युद्ध हम कर आएँगे
हम फ़िर खड़े हो जाएँगे,हम फ़िर खड़े हो जाएँगे
गगन अच्युत,.धूरि के एक धुँध से ही ना दिखाए
अमर अंबर उड़ रहा हो,..तितलियों के पंख पाए
पवन उर आलस्य धर कर,.कंपनों में सकपकाए
वेदना ब्रह्मांड भर की,..प्रति श्रवण में आ सुनाए
भ्रम बने जब जुगनुओं को,.अर्क को चोँधियाएँगे
हम फ़िर खड़े हो जाएँगे,हम फ़िर खड़े हो जाएँगे
©सूर्यम मिश्र
©Suryam Mishra -
नित नए सब स्वप्न बुनकर, गर्त में जाता रहा मैं
क्या कुटुंबी और क्या धन, सभी कुछ खाता रहा मैं
निज हृदय विध्वंस कर, अपभ्रंश का भागी हुआ मैं
गत-अनागत काल चक्रण में फँसा, दागी हुआ मैं
मैं हूँ बैठा, ज्ञान,दर्शन,चेतना, सब नष्ट करके
कौन अपना औ पराया, यही सब स्पष्ट करके
मैं नियति के द्वार, याचक बन, खड़ा कब तक रहूँगा?
मृत्यु धारण कर चुका हूँ, कहाँ किस किससे कहूँगा?
कौन होगा,जो सुनेगा, मन से मेरे दग्ध मन को,
या करेगा, स्नेह से स्पर्श, मेरे रुग्ण तन को?
कौन समझेगा, ये मेरे हास्य का, वो करुण क्रंदन?
कौन होगा जो करेगा, शीश मेरे मुक्ति मंडन?
वेद जितनी वेदना, धर कर, हृदय बस चल रहा है
कल्प भर से,.कल्पना का विष पिया अविचल रहा है
चक्षुओं में अश्रु बैठे, नित नई कुंठा सजाए
कौन हो जो, उन को छूने से, तनिक भी ना लजाए?
प्रार्थना कोई सुने बस, व्यथोदधि उद्दाम ना हो
जय पराजय सब है स्वीकृत,बस हृदय संग्राम ना हो
बस हृदय संग्राम ना हो.........
©SURYAM MISHRA -
ग़ज़ल
गया बेकार फ़िर, ये आँख का ज़मज़म हमारा
हुआ गुमनाम फ़िर वो कल्ब करके नम हमारा
फकत हर बार अपने ही किसी ने,. दर्द बख्शा
कभी गर दर्द हो पाया ज़रा भी,... कम हमारा
तवक्को थी हमें भी कि,...रहेंगे बन के हमदम
बड़े ही दम से हमदम ने,. निकाला दम हमारा
मलाज़ो में ज़रा भी ठौर, मिल पाया ना हमको
खुदा घर यार सोचें,.क्या ही हो मक़्दम हमारा
मुआलिज,इस खुदा ने ,खूब ढ़ाया कहर मुझपे
किया फ़िर से यहाँ बर्बाद, सब दमखम हमारा
बिना गज़लों के यूँ तो बात हो सकती नही थी
पड़ा चुप-चाप है,... बेजान हो "सूर्यम" हमारा
©SURYAM MISHRA -
शिवस्तुति
नमामीश शंभुं,......त्रिकालं नमामिं
महाकाल कालं,......कृपालं नमामिं
महेश्वर सुरेश्वर........श्री संतापहारी
प्रभो चंद्रशेखर.........भुजंगेशधारी
जटाजूट शंभो त्रयं.........ताप हारी
दिगंबर दिशाधिप,.....प्रणम्यं पुरारी
ललाटाक्ष मोहक कृपानिधि जटाधर
परमवीरभद्रं......कपर्दी......धराधर
महादेव भूसुर,..मृत्युंजय अचर-चर
स्वयं शून्यनंतं,....स्वयंभू क्षर-अक्षर
नमो चारुविक्रम,..जगद्व्याप्त शंकर
सुखं सृष्टि मूलं,......सुपर्याप्त शंकर
अनघरूप साशक्त,....अव्यक्त शंकर
सदा शक्ति,..शाश्वत समनुरक्त शंकर
गिरीशं नमो,........चंद्र भालं नमामिं
महाकाल कालं,.......कृपालं नमामिं
©सूर्यम मिश्र
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rani_shri 2w
कुछ इस तरह तन्हाई मुझको दे गया,
वो साथ अपने मेरा ख़ुदा भी ले गया।
©rani_shri -
शे'र
न होने का एहसास सब को है....
मौजूदगी की कदर किसी को नहीं....
©एहतेशाम_शैख़ -
आग झोकता सारा आसमा,
सह्याद्री भी गुंज उठा
छत्रपती के घर,
नंदलाल पैदा हुंअा
धर्म था, कर्म था,
ज्ञानी पंडित सा था
शूर था , वीर था,
शिव तांडव सा था
शस्त्र, शास्त्र का जोड था,
बुध्दी का न तोड था
आग की चिंगारी था,
दिल्ली के तख्त का शिकारी था
सारा जहाँ झुकता है,
दिल्ली का ये घमंड तोडा था
आखों में आंखे डालके,
सीना तानें ये खडा था
नियती अंजान थी,
अपनोंसे गुमनाम थी
शेर को पिंजरे में देख के,
मन ही मन मस्कुरा रही थी
कपट से पकड लिया था, जखड लिया था
लेकीन ना झुका, ना बीका
अपने अकड का रुतबा,
उसने बरकरार रखां
जिस भी दीन गिरा
उस दीन संभा नहीं,
औरंग्या का ताज गिरा
©khaire_patil -
I am more than just a mere
girl who talks & writes about love.
I am not just about poetries,
I write & sunsets I capture in heart.
I am also present in the worst thunderstorms you see,
the heavy rain you can't bear
on your gentle skin.
I am not about the expensive coffees
you take sip of in cafe's,
I'm more about calm sips of
"chai" after a stressful day.
'Pain turn into art' I often say,
but sorry I didn't tell you
it always hurts even after turning
it into an artistic form,
and I find myself under the mass
of clouds coloured grey.
Sunflowers and smile is what
I share with everyone I meet,
but afraid to share the withered
petals I've hidden in my diary
Cause somehow I know,
people will crush it in their hands.
And,
I will also lose my dry sad petals.
I love long deep conversations about
Universe, Psychology & Spiritualism.
You see..!
I love many more things other than love.
I am not about the mindful books you read,
I am more about the life experiences
that teach you more than those books.
I am not about the regrets you
cry about,
I am more about the brave decisions
you take for yourself & work hard
to make it right.
I am not just about the pretty smiles,
I'm also about the tears you hold back
when you feel low,
one more thing!
please let that flow from your eyes.
I am not about the heartbreaks
you go through,
I am more about the random
love stories you get into.
I don't stay silent
when it's time to scream,
Am not just a poetic girl
you will see someday
In your daydreams.
sometimes I stay silent
when I think it's meaningless
to speak,
and I truly hope
you may find the love & hope
in my words for all that I seek.
I'm more than a bubbly person,
who always laughs at silly jokes,
who always hums sufi songs,
who always runs to the rooftop
to see the evening sunsets,
who always has a little smile on
her face.
Yes!
I am more than a girl who writes
about love.
~Divyanshi Srivastava -
°°°°°°°
रूप सजा के बनवारी कौ चंदन क्यों इठलाये?
कान्हा! तेरो पग लगकर, चंदन अक्षय हो जाये!
©raakhaa_ -
jigna_a 2w
कौन अच्छा कौन बुरा,
बहुत सोचा,
कौन अच्छा कौन बुरा,
फिर समझा,
जो किसीके बारे में न सोचे,
ये अच्छा और वो बुरा,
एक आधा तो दूजा पूरा,
ज्यों ज्यों समय बहता,
बहते बहते कुछ कहता,
मुझसे तो ना बलवान तू,
फिर किससे परेशान तू,
एकदूजे को सोचते सोचते,
एकदूजे को कोसते कोसते,
भूल जाते हो तुम सब,
मैं ही अच्छा,
और मैं ही बुरा,
फिर चाक को मैं घुमाऊँगा,
कोई नयी गाथा सुनाऊँगा,
ये आज जो पीर देता है तुझे,
कल उसमें अच्छा कहलाऊँगा,
अब छोड़ भी दो ये संघर्ष,
कौन अच्छा, कौन बुरा,
कोई आधा तो कोई पूरा।
©jigna_a -
happy81 2w
इश्क वालों को एक बेहद ज़रूरी मश्वरा हैं..
इश्क करना वादे करना..
पर कभी ना साथ छोड़ने वाला वादा मत मांगना..
क्युकी..
क्युकी..
वादे टूट जाते हैं जो दिल को बहलाते हैं..
मोहोबत्त में बड़े से बड़े उस्ताद हार जाते हैं..
किया जाता नहीं जिन्दा पुराने खुशनुमा दिन को..
सितम ऐ जिंदगी को हम गुनाह का घऱ बताते हैं.. "".. !
©happy81 -
rahat_samrat 2w
छंद- कनक मंजरी (वर्णिक)
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चरण- 4 (दो-दो चरण समतुकांत)
विधान- IIII + भगण (6) + गुरु
(13,10 यति अनिवार्य )
IIII SII SII SII, SII SII SII S
शीर्षक- चातक
**************छंद
समय विवर्तन चातक याचक, साधक एक अधीर सुधा,
दिवस व मास दिगंत विलोकत, तिक्त विवेक विरुद्ध क्षुधा।
विकल निकुंज तृषा मनसा उर, रम्य फुहार प्रसून खिले,
घिर यदि पावस स्वाति विनोदित, बूँद तृषा जिँह कूप मिले।
इत उत डोलत सारन क्रंदन ,ज्यों भय भृङ्ग विरुद्ध गती
पथ अवलोकत मेघ नवोदित, नूतन वारि विभा हरती।
सरद निदाघ बसंत गए बहु, माह विभूषित एक दिवा,
खग दुविधा प्रभुता नित खोजत, मेघ सुनृत्य विरंचि शिवा।
निशमन नाद प्रभंजन चातक, ज्यों नभ तोयद हार गए,
अविरल आहत क्रन्दन सारन, देखि सुवर्ण वितान लए।
हतप्रभ स्वाति तृषा अवनी उर , वंदन वारिद व्यग्र भए।
घन घिर मेघ प्रभा बरसे क्षण, वृन्द विनोद कछार नए।
मृदुल मृदंग उमंग प्रभाकर, चातक तृप्त तृषा सकुची,
अरु क्षण शुक्ति भई शुचि शुक्तिज, बूँद पयोधि प्रभा पहुँची।
किसलय कोमल पर्ण सुवासित, चातक ज्यों समता रखिये,
सरस प्रभाव सुमेरु प्रभा रुचि, धैर्य विभा क्षमता रखिये।
©rahat_samrat -
बेपरवाही से हमने भी आज जीकर देखा,
उसकी आँखों का नीम नशा पीकर देखा।
नज़रे चुराकर भी वो सब कुछ कह जाती ,
इस दफा हमनें भी होठों को सी कर देखा।
कभी डरते थे नाज़ुक दिल के टूट जाने से ,
आज तेरा हर ख़्वाब टुकड़ों में बिखर कर देखा।
हम धड़कन पर बेशक काबू कर लेते मगर,
जाते जाते क्यूँ तुमने इस क़दर मुड़कर देखा ।
सहम जाता था ये मासूम दिल तुम्हें खोने से,
तुम गैर हो प्यार से इसको कह्कर देखा।
Ranu ranka
©physics_wali_writer -
तेरा मेरा साथ रहे
हाथों में यूहीं हाथ रहे
और हाथों की इन लकीरों में
बस एकदूजे का नाम रहे
©saloniiiii
