ना आना की राहों में बड़े पत्थर है ,
इश्क़ का रास्ता लाज़मी नही इस शहर में ,
है कई दरवाज़ें , है कई खिड़किया है मंदिर और मस्ज़िद भी ,
हवा है दबाव में सच्चाई के और अफवाहों का बाजार है इस शहर में ,
यहाँ बस्ती है शानों शौकत की , लोग भी बड़े मशरूफ़ है ,
एहमियत आपकी जानी जाती है आपके लिबाज़ से इस शहर में ,
एक दीवाना आया भी था रंग बिखेरने मोहब्बत के यहाँ,
अँजाम कुछ यूं था कि दो ग़ज़ ज़मीन तो नसीब हुई पर फूलों से परहेज़ रही है इस शहर में
©vishalprabtani
vishalprabtani
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शिकायतों की रिवायत रही नही ....
ए-ज़िन्दगी इसीलिए तुझसे गिला नही ....
मंज़िल ....मेरे दर से बड़ी दूर रही ......
रोशनी जुगनू की है साथ , इसीलिए अँधेरो से गिला नही ।।।।।
©Vishal Prabtani -
दुआ, करम, किस्मतें लाज़मी है .....
लेकिन
कौनसा कलमा पढ़ू के तेरी निगाह में मेरा अक्स उत्तर आए
©vishalprabtani -
मैं हँस के ज़हर पी लेता गर बेबसी होती तेरी ,
तेरी फ़ितरत में ही मुझे ठुकराना था ये बात बड़ी देर बाद पता चली .....
©vishalprabtani -
एक जंगल बंजर ज़मीन का टुकड़ा बन गया ....
कभी चिंगारी से पूछा था तेरी हैसियत क्या है ?????
©Vishal Prabtani -
करू तौबा मगर .... लाज़मी तो ये भी नहीं ....
मेरी बर्बादी में शामिल एक महज़ शराब तो नहीं....
©Vishal Prabtani -
vishalprabtani 113w
आज एक लाचार माँ के आँसू पूछ रहे है ....
वो कौनसी किताब थी जिसमे लिखा था
" बूढ़ा होने पे इंसान को लाचार छोड़ दो "
©Vishal Prabtani -
vishalprabtani 114w
जब भी कभी कुछ माँगने के लिए उस रब के सामने हाथ जोड़े ....
मेरे लबों पे तेरे सिवा कोई और नाम ना था .....
©Vishal Prabtani -
मैं अँधेरा रात का .....
तू कतरा रोशनी का ....
दो घड़ी का मिलन अपना ....
एक ख़िलती सुभह का ... एक ढ़लती शाम का ...
©VISHAL PRABTANI -
तेरी हर एक याद को मिटाने की कोशिष तो हर बार की मगर ....
वो मेरा रूमाल जिसमे तेरी आँखो का काजल लगा था कभी ...
आज भी सीने से लगा के सोया करता हूँ ......
वो आइना जिसे देख के तुम अपने आपको सवारा करते थे ...
आज भी उस आईने अक्स तुम्हारा ढूँढता रहता हूँ ....
जिस मोड़ पे हम मिले थे कभी अंजान बन कर ....
आज भी तुझसे मिलने की आस में उन गली से तुमसे मिलने की आस में गुज़रा करता हूँ .....
ना ख्वाईश , ना आरज़ू , ना जुस्तजू , ना ही कोई उम्मीद फिर से मिलने की ये अनकहा वादा तो है .....
फ़िर भी तेरी उम्मीद पे दुनियां भूलाए ... आज भी तेरे इंतेज़ार में बैठा हूँ ....
©Vishal Prabtani
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डर
देशप्रेम का जज़्बा उनके सीने में धड़कता है,
जाँबाज़ सिपाही देश पे आफ़त आए तो तड़पता है।
भारत माता की चरणधूलि उनका चरणामृत जैसे,
मान, सम्मान मिटे कभी ना सर रहे हिमालय खड़ा वैसे,
संकट देश पे आए तो उन्हें खुद की साँसों का बोझ लगता है,
जाँबाज़ सिपाही देश पे आफ़त आए तो तड़पता है।
थलसेना हमारी धूरी तो जलसेना आधार है,
वायुसेना बाहुबली सी महिमा अपरंपार है,
इनकी हिम्मत देख काँपता ड़र भी इनसे ही ड़रता है,
जाँबाज़ सिपाही देश पे आफ़त आए तो तड़पता है।
देशप्रेम का जज़्बा-------------------
©jigna_a -
jigna_a 23w
हृदय को मंजूषा बना उसमें एक मंशा रखी,
प्रिया को प्रत्येक प्रत्युषा अपने पियु संग देखनी।
©jigna_a -
जब एक सिपाही मरता है,
तब लाखों करोडों का सुरक्षा कवच टूटता है।
©jigna_a -
अर्थ
बड़ी शैतान है तू
कभी अपने मुताबिक मुझे ढ़ालती
कभी दूजों को मुझसे पहचानती,
अब क्या ऐसे बनती है?
हाँ, मैं तेरी कविता हूँ।
मुझे आँखें दिखाती ?!
भूल नहीं, मुझमें पनपती,
तेरे शब्दों के श्रृँगार हेतु
मैं स्वयं को कितना निचोडती!
तभी तो बनती कविता तू।
आज कुछ तुझसे पूछती हूँ
तुझसे मैं या मुझसे तू?
तेरी अडोल, अस्पष्ट संवेदनशीलता का
मैं स्पष्टीकरण करती हूँ
समझ, मैं तेरी कविता हूँ।
किंतु तू भी तो चंट बड़ी
क्या बन जाती है खड़ी-खड़ी?
कभी शांत सरिता सी बंधती छंदों में
कभी उन्मुक्त अतुकांत रूप धरती,
शैतान, मेरी है कविता तू।
अब यह सवाल ही व्यर्थ है
तुझसे ही मैं तेरी कविता हूँ।
और तू ही तो मेरा अर्थ है
मैं तेरी, है मेरी कविता तू।
©jigna_a -
लिबास
कहाँ है?,अभी तो यहीं थी!
शोर, बेचैनी, खुसुरफुसुर
माँ की आँखें राह पे जड़ी
बाट निहारे टुकुर टुकुर।
यहीं तो थी आँगन में
सातवें साल के बचपन में,
खेल रही थी मिट्टी में सनी
जैसे मोम की पुतली कोई।
कोई तो आया! माँ चिल्लाई
मुनिया नहीं! ज़रा सकपकाई,
बाप के रुआँसे दिल दहला रहे थे
अनहोनी हुई कुछ बतला रहे थे।
चोकलेट की लालच दी थी उसने,
अपनी मुनिया को नोंच डाला,
थोड़ी सी चीख क्या निकली,
गला दबाकर दबोच डाला।
गुलाबी घाघरा, पीली थी चुनरी
छोटी सी मुनिया, क्या थी छिछोरी?,
कहते औरतें लिबास से उकसाती है,
फिर मुनिया क्यों मारी जाती है?
©jigna_a -
દરિયો શોધી ને પણ ક્યાં કિનારો છે,
તરસ્યા સમજતા નથી એ ખારો છે.
જિગ્ના -
इंतज़ार
सारे शिकवे छोड़छाड़ और शिकायत रख परे,
माना दर्द दर्दीला है तुम खड़े मुँह मोड़ के,
चार कदम गर चल दूँ तो,
तुम एक कदम को जोड़ोगे?
मैं अब भी वहीं खड़ी हूँ हमदम,
एकबार पलट के देखोगे?
माना बहुत कंटीला है,
आँखें है नम, दिल गीला है,
लबों पे आज भी नगमें है,
हर लफ़्ज़ में पर सुर ढीला है,
मैं राग नया ही छेडूँ तो,
तुम अंतरा नया जोड़ोगे?
मैं अब भी वहीं खड़ी हूँ हमदम,
एकबार पलट के देखोगे?
मैंने मन को भी समझाया है,
छोड़ लगाव तू माया है,
पर तार कोई अनदेखा सा,
जाने क्यों तुझ संग बाँधा है,
मैं जबरन तार वो तोडूँ तो,
तुम गाँठ नई फिर बाँधोगे?
मैं अब भी वहीं खड़ी हूँ हमदम,
एकबार पलट के देखोगे?
मेरे इस इंतज़ार के मनके
एक एक कर जोड़ोगे?
सारे शिकवे छोड़छाड़------
©jigna_a -
jigna_a 24w
जीवन वृक्ष
स्त्री
जड़ है, नीँव भी,
संसार में जीवन वृक्ष को
जकड़कर रखती।
स्वभाव है उसका
नेह पोषण को संजोकर रखती,
समय समय पे
पर्ण,पुष्प,शाखाओं को
सिंचित करती।
पुरूष तना है
क्या इसीलिए तना है?!
ना, सही नहीं यह
वृक्ष का आधार बना रहे
वो फलता-फूलता रहे
तभी तो वो अकड़ा हुआ है।
दोनों पूरक है
मानते हैं हम,
अपितु याद रहे,
जड़ें कमज़ोर हो गई
तो कुछ ना बचेगा,
प्रेम नीर देना उसको
वर्षो तक तरु यूँ ही खड़ा रहेगा।
©jigna_a -
रूहानी प्रेम
कल बड़ी लड़ाई की कान्हा से,
पूछा.....,
उससे मिलाया क्यूँ??!
और मिला भी दिया तो ऐसे क्यूँ,
कि उसकी कमी इतनी खल रही,
जब मेरे नसीब में पाना नहीं था उसे,
तो मिलाया क्यूँ??
कान्हा बोले,
कमी मेरी रीत में नहीं,
परंतु तेरी प्रीत में अवश्य है,
गर पा लेने से प्रेम पूर्ण होता,
तो राधा कृष्ण नहीं,
रुकमिणी कृष्ण बोला जाता,
जो पाया होता तो पास होते हुए भी भुलाया होता,
और अब प्रतिक्षण में पाओगी,
पा कर नहीं,
खो कर पाने में है प्रेम!!
दैहिक और भौतिक क्षणभंगुर,
कालजयी है
रूहानी प्रेम!!
©jigna_a -
jigna_a 24w
#rachanaprati121 @loveneetm
एक ही विषय पे मुसलसल ग़ज़ल। ये मुलाकात एक बहाना है की धुन पे।
#nayab_naushadकाश/ग़ज़ल
2122 1212 22/112
काश का भी अजब फसाना है,
बाद अफ़सोस के जताना है।
जो गिला हम लबों किया करते,
वो गिला काश से बताना है।
वो मिला क्यूँ नहीं हमारा जो,
खो दिया काश से भुलाना है।
रात मायूस यूँ हुई है गुम,
काश से साथ जो पुराना है।
बोल "जिगना" जलन उठी कैसी,
आग को काश से बुझाना है।
©jigna_a
