प्रत्येक पुरुष प्रधान समाज भरा पड़ा है...
धृतराष्ट्र जैसे पिता से, जिनकी मति पर बंधी रहती है
पुत्र मोह की पट्टी ,
जो देते हैं अपने ही संतानों के कुकृत्य को बढ़ावा ,
शकुनी जैसे षड्यंत्र कारीयो से,
दुर्योधन जैसी मनसा वालों से ,जो किसी भी तरह मौका पाते ही करना चाहते हैं स्त्री को अपमानित,
वह जानते हैं युधिष्ठिर जैसे समस्त पुरुष की हद को जो लगा सकता है ,अपनी ही स्त्री का दांव समय आने पर ,
कई करना चाहते हैं निर्वस्त्र झांकना चाहते हैं स्त्री के भीतर का स्त्रीत्व ,
किसी दुशासन की तरह ,
विद्रोह करने वाले विकर्ण
दबा दिए जाते हैं अक्सर ,
अन्याय का पलड़ा भारी होने पर,
कुछ महाबल शाली महा ज्ञानी न्याय कर्ता
जो समय आने पर मूंद लेते हैं आंख ,कान और
अलाप देते हैं राग, किसी के अधीन होने का दर्शक बन खड़े रहते हैं मूक बधिर भीष्म, द्रोण या कृपाचार्य की तरह
धर्मराज विदुर जैसे कुछ, ना कर पाने कारण बस उचित समझते हैं त्याग देना सभा,
और स्त्री ?
ढूंढती रह जाती है
हर युग में,
कृष्ण !
- अज्ञात
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रोका तो ,
बोले जाने दो ,
जाने दिया तो बोले ,
यही चाहते थे ।
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आजमाना अपनी मोहब्बत को पतझड़ में दोस्त,
सावन में तो हर पत्ता हरा नजर आता है ।
~ अभी
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वो जिसे अब मेरी आवाज सुनाई ही नहीं देती ,
मैं क्या पता उसे आवाज लगाता बहुत हूं ,
जिससे थोड़ी खुशी नसीब करनी थी मुझे ,
अपने उस दिल को मैं बेवजह रुलाता बहुत हूं ,
वह मुझे जिसने कभी समझा ही नहीं ,
मैं उससे खामखा समझाता बहुत हूं ,
मैं बाहर से शांत चाहे जितना लगूं ,
अपने अंदर चीखता चिल्लाता बहुत हूं ।
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इस सफर में मेरे साथ चलना
कि मैं लड़खड़ाता बहुत हूं ,
हो सके तो मेरा हाल पूछ लेना ,
मैं सबसे छुपाता बहुत हूं ,
कोई बात जो मुझे पीछे रोक रखी है
उसकी धुन में मैं आजकल गाता बहुत हूं
अपने अंदर समंदर छुपा के
मैं चेहरे पर हंसी लाता बहुत हूं ।
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मोहब्बत भी एक अजीब खिलौना है
जो रुलाता है
उसी के पास जाकर रोना है
~ अभी
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"Chott Gehri Hai Jeena Muhaal Hogaya ,
Khudse Hokar Guzare Ek Saal Hogya ".
©shivangi_gawande
